सिखों के प्रथम गुरु और संस्थापक गुरु नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था । इनका जन्म पंजाब की रावी नदी के किनारे तलवंडी में हुआ जो वर्तमान में पाकिस्तान में है । हिन्दू परिवार में जन्मे नानक जी ईश्वर की आस्था में विश्वास रखते थे । 16 वर्ष की उम्र में शादी कर घर से दूर यात्रा पर निकल गए ।अफगानिस्थान ,अरब जैसे अन्य देशों की यात्रा की और लोगों को उपदेश दिया । 30.11. 2020 में गुरु नानक देव जी की 551 वी जयंती मनाई जा रही है।इसी दिन देव दीवाली यानी " देव दीवाली " ( हिन्दू धर्म की कार्तिक पूर्णिमा ) भी मनाई जाती है। इस दिन पूरे भारत मे सरकारी छुट्टी होती है लोग एक दूसरे को गुरुनानक देव की जयंती की बधाई देते है और सिख समाज के सभी बच्चे बूढ़े वाहे गुरु जयते प्रभात फेरी निकाल कर लंगर का आयोजन करते है ।गुरुनानक देव की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है सिख समाज का यह सबसे बड़ा पर्व है। वे सिख धर्म के प्रथम गुरु होने के साथ साथ दार्शनिक ,समाजसुधारक ,धर्मसुधारक व देशभक्त थे ।अंधविश्वास और मूर्ति पूजा के विरोधी थे ।उन्होंने धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और पूरी दुनिया मे सिख धर्म का प्रचार किया । उन्होंने अपने अनुयाईयों को ईमानदारी से जीवन जीने की शिक्षा दी।वे एक अद्भुत समाज सुधारक , सिख पंथ के संस्थापक व प्रथम गुरु थे।भारत की समृद्ध संत परंपरा के अद्वित्तीय प्रतिक थे।
गुरुनानक देव 500 साल पहले भोपाल आए थे। वे जहा रुके वहा आज भी गुरुद्वारा टेकरी शाहिब बना है। जहा आज भी उनके पेरो के निशान है यही पर उन्होंने एक कोढी का कोढ़ ठीक किया था। देश और दुनिया के सिख और दूसरे समुदाय के लोग माथा टेकने एते है। भोपाल के बाद बुरहानपुर का भी गुरुनानक देव जी का ऐतिहासिक सम्बन्ध है। यहाँ पर गुरुनानक देव जी महाराज और 10 वे गुरु, गुरु गोविन्द सिंह यहाँ आए थे।वे यहाँ महारष्ट्र के नाशिक शहर होते हए आये अभी भी यहाँ राजघाट का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है उन्होंने भक्तों के कर्मकांडो व व्यर्थ के आडम्बरों से निकालकर भगवन की भक्ति व उनकी बंदगी का पवित्र उपदेश दिया।
" न कोई हिंदू है ,न कोई मुसलमान है ,सभी मनुष्य है ,सभी समान है.... "
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